Wednesday, February 7, 2024

डॉक्टरों और अस्पतालों के खिलाफ हिंसा की सोच - असर किधर है नजर किधर?

 डॉक्टरों और अस्पतालों के खिलाफ हिंसा की सोच - असर किधर है नजर किधर?

सनातन सत्य है की डॉक्टरों या समाज के उच्च बौद्धिक कार्य करने वालों से जान सामान्य के रिश्ते हमेशा मधुर नहीं रहे हैं. बल्कि कहें की कभी भी मधुर नहीं रहे हैं . . .  हनुमान जी ने सुखेन वैद्द्य का लंका के राजकीय प्रासाद से अपहरण किया गदे की धमकी दी - नहीं, भगवान राम ने ज्ञान की बात भी की, जिसके बाद सुखेन वैद्य सुधर गए, लेकिन उसके पहले हनुमान जी अपना काम गदा की धमकी से कर चुके थे . . . वहां पर समुद्र से किये गए अनुनय विनय का समय नहीं था - इमरजेंसी जो था . . . 

पिछले दो दशकों से डॉक्टरों और अस्प्तालाओं के खिलाफ सोच में फर्क हुआ है ऐसा कुछ लोग सोच सकते हैं पर यह चिरातन, सनातन सत्य है की डॉक्टरों या समाज के उच्च बौद्धिक कार्य करने वालों से जान सामान्य के रिश्ते हमेशा मधुर नहीं रहे हैं. हनुमान जी ने सुखेन वैद्द्य का लंका के राजकीय प्रासाद से अपहरण किया गदे की धमकी दी - नहीं, भगवान राम ने ज्ञान की बात भी की, जिसके बाद सुखेन वैद्य सुधर गए, लेकिन उसके पहले हनुमान जी अपना काम गदा की धमकी से कर चुके थे . . . वहां पर समुद्र से किये गए अनुनय विनय का समय नहीं था - इमरजेंसी जो था . . . 

सिकंदर ने अपनी मौत के बाद डॉक्टरों को अपने शव को शमशान तक ले जाने का फरमान जारी किया था तो आज के नेता डॉक्टरों का अपमान करने में सबसे आगे हैं यह कोइ बड़ी बात नहीं है . . . 

इस सबसे के बीच डॉक्टटोरन के आपसी मतभेद भी कम नहीं हैं - मनुस्मृति हजारों सालों पहले लिखा है की विद्वानों का आपसी मतभेद हीं जान सामान्य के जीवन को सरल बनाता है . . . 

जारी है 

Sunday, May 14, 2023

गले के स्पाइन की हड्डी (सर्वाइकल स्पाइन cervical spine) खासकर उसके निचले हिस्से की हड्डियों और सीने के स्पाइन की हड्डियों (dorsal डोर्सल या थोरैसिक thoracic स्पाइन) की सर्जरी

 वैसे तो कोई भी सर्जरी आसान नहीं होती है, खासकर स्पाइन की कोई भी सर्जरी आसान नहीं होती है पर शरीर के कुछ स्थान पर सर्जरी करना बहुत हीं मुश्किल काम होता है.

गले के स्पाइन की हड्डी (सर्वाइकल स्पाइन cervical spine) खासकर उसके निचले हिस्से की हड्डियों और सीने के स्पाइन की हड्डियों (dorsal डोर्सल या थोरैसिक thoracic स्पाइन) की सर्जरी करना सबसे कठिन स्पाइन सर्जरी में से माना जाता है.
दिल्ली के महाराजा अग्रसेन अस्पताल के डॉक्टरों के टीम (डॉ मनीष कुमार न्यूरोसर्जन, डॉ सुशिल भसीन न्यूरोसर्जन, डॉ एस के जैन कार्डिओ थोरैसिक सर्जन) ने ऐसी हीं एक सर्जरी किया जिसमें गले के स्पाइन की आखिरी हड्डी (C 7) और सीने के स्पाइन की सबसे पहली हड्डी (डोर्सल या थोरैसिक स्पाइन - D1 या T 1) बीमारी के कारण सड़ कर खराब हो चुकी थी और पस के कारण स्पाइनल कॉर्ड (spinal cord ब्रेन से





पाँव तक को कण्ट्रोल के लिये जाने वाला नसों का गुच्छा) दब रहा था जिसके कारण रोगी के हाथ पाँव में कमजोरी हो रही थी और सांस में भी दिक्कत होती जा रही थी. सर्जरी द्वारा C 6 से D 2 तक की सर्जरी करनी थी और 32 वर्षीया रोगी का गला काफी छोटा था जिसके कारण गले की नीचे तक सर्जरी की जरुरत थी.
सड़न आगे की हड्डियों के भाग वर्टेब्रा (vertebra) में था जिसके कारण पीछे से सर्जरी द्वारा इसका इलाज करना मुश्किल कार्य था. सर्जरी आगे से हीं करना था और गले और सीने के ऊपरी भाग को खोल कर करना था. रोगी को सबंधित खतरों की जानकारी के बाद न्यूरोसर्जन और कार्डिओ थोरैसिक सर्जन की टीम ने सर्जरी द्वारा इलाज किया।
गले के निचले हिस्से के साथ सीने के ऊपरी भाग में सर्जरी की गयी. ऑपरेशन द्वारा सीने की हड्डी को दायीं ओर से काट कर हार्ट और उसके बड़े खून की नलियों समेत, ट्रेकिआ (सांस की नली) और इसोफैगस (खाने की नली) को खिसकाया गया और सीधा वर्टेब्रा गले के स्पाइन की आखिरी हड्डी (C 7) और सीने के स्पाइन की सबसे पहली हड्डी (डोर्सल या थोरैसिक स्पाइन - D1 या T 1) पर काम किया गया. सड़ी हुई हड्डियों और पस को हटाया गया. फिर ऊपर और नीचे की हड्डी - C 6 से नीचे की हादी D 2 को साफ़ कर तैयार कर स्क्रू और रोड से जोड़ा गया.
सर्जरी के बाद रोगी तुरंत होश में आ गयी और खुद से अच्छा से सांस लेने लगी. अगले कुछ हीं दिनों में हाथ पांव् में अच्छा सुधार हुआ और वह खुद से चलने फिरने लगी और अपना काम करने लगी.
टी बी की दवाएं लगातार दी गयी वह इसलिए और जरूरी था क्यूंकी उसे दस सालों पहले टी बी हुयी थी.
अब वह पूरी तरह से नार्मल है. टी बी की दवा बंद कर दी गयी है.
सीने के स्पाइन की सबसे पहली हड्डी (डोर्सल या थोरैसिक स्पाइन - D1 या T 1) और उसके नीचे की हड्डियों का ऑपरेशन इस तरह आगे से किया जा सकता है. यह टेक्निकली कठिन लेकिन वैज्ञानिक रूप से सही सरजरी है और अच्छे नतीजे देती है. जरुरत होने पर इस विधि को जरूर अपनाया जाना चाहिए. खासकर कम उम्र के रोगियों में इस विधि को अपनाने से परहेज नहीं करना चाहिए।

Monday, April 24, 2023

उसे भी देख, जो भीतर भरा अंगार है साथी

 उसे भी देख, जो भीतर भरा अंगार है साथी।

सियाही देखता है, देखता है तू अन्धेरे को,
किरण को घेर कर छाये हुए विकराल घेरे को।
उसे भी देख, जो इस बाहरी तम को बहा सकती,
दबी तेरे लहू में रौशनी की धार है साथी।
पड़ी थी नींव तेरी चाँद-सूरज के उजाले पर,
तपस्या पर, लहू पर, आग पर, तलवार-भाले पर।
डरे तू नाउमींदी से, कभी यह हो नहीं सकता।
कि तुझ में ज्योति का अक्षय भरा भण्डार है साथी।
बवण्डर चीखता लौटा, फिरा तूफान जाता है,
डराने के लिए तुझको नया भूडोल आता है;
नया मैदान है राही, गरजना है नये बल से;
उठा, इस बार वह जो आखिरी हुंकार है साथी।
विनय की रागिनी में बीन के ये तार बजते हैं,
रुदन बजता, सजग हो क्षोभ-हाहाकार बजते हैं।
बजा, इस बार दीपक-राग कोई आखिरी सुर में;
छिपा इस बीन में ही आगवाला तार है साथी।
गरजते शेर आये, सामने फिर भेड़िये आये,
नखों को तेज, दाँतों को बहुत तीखा किये आये।
मगर, परवाह क्या? हो जा खड़ा तू तानकर उसको,
छिपी जो हड्डियों में आग-सी तलवार है साथी।
शिखर पर तू, न तेरी राह बाकी दाहिने-बायें,
खड़ी आगे दरी यह मौत-सी विकराल मुँह बाये,
कदम पीछे हटाया तो अभी ईमान जाता है,
उछल जा, कूद जा, पल में दरी यह पार है साथी।
न रुकना है तुझे झण्डा उड़ा केवल पहाड़ों पर,
विजय पानी है तुझको चाँद-सूरज पर, सितारों पर।
वधू रहती जहाँ नरवीर की, तलवारवालों की,
जमीं वह इस जरा-से आसमाँ के पार है साथी।
भुजाओं पर मही का भार फूलों-सा उठाये जा,
कँपाये जा गगन को, इन्द्र का आसन हिलाये जा।
जहाँ में एक ही है रौशनी, वह नाम की तेरे,
जमीं को एक तेरी आग का आधार है साथी।

Wednesday, April 12, 2023

मनीष कश्यप: राजनैतिक प्रयोगशाला में बिना तेल की जलती बाती - रौशनी या धुंआ? #Bihar #bihari #BiharNews

भा ज पा या वर्त्तमान मेन स्ट्रीम मीडिया मनीष कश्यप को भाव नहीं दे रही है क्यूंकी मनीष कश्यप भाजपा का नहीं है पर कड़वी सच्चाई यह है की वर्त्तमान के भाजपा के किसी नेता में यह दम नहीं है की वे लालू कुनबे या नितीश के आँख में आँख डालकर बात कर सके - या वे समझते होंगे की मंदिर और हिन्दू मुस्लिम का टेंशन उनकी जीत के लिए काफी होगा

बिहार में वैसे तो पिछले पचास - पचपन सालों से आर्थिक - औद्योगिक ह्रास हीं हुआ है, लेकिन 1990 के बाद देश और दुनिया के सबसे निचले स्तर पर रहा है. वैसे तो अशोक मौर्या के बाद बिहार के भू- भाग से उस स्तर का कोइ भी प्रभावी नेतृत्व नहीं रहा, पर 1960 - 70 के दशक में जब स्वतन्त्रता सेनानियों वाला जेनेरेशन एक के बाद एक यह संसार छोड़ कर जाने लगा, बिहार का नेतृत्व बहुत हीं निचले स्तर का हो गया. इसमें बहुत बड़ा रोल केंद्र सरकार की फ़्राईट एक्वालाईजेशन नीति और खासकर इंदिरा गांधी की कांग्रेस में किसी भी सच्चे जनाधार वाले को न पनपने देने की नीति का था तो अलोक मेहता जैसे पत्रकारों का रोल भी कम नहीं था.

खैर 1961 से 1990 तक कमो - बेस कांग्रेस पार्टी का शासन हीं रहा लेकिन बिहार का औद्योगिक या आर्थिक विकास मुद्दा नहीं रहा - कुर्सी बचाना मुद्दा रहा क्यूंकी योग्य और कुशल व्यक्तिगत नेतृत्व का अभाव था और कांग्रेस पार्टी का अजेंडा बिहार का विकास नहीं था. बिहार के बाहर के लोगों के नियंत्रण की मीडिया सिर्फ गलत राह दिखलाती रही.
1990 से बिहार को एक मजबूत नेतृत्व हासिल है - लालू जी और उनके कुनबे के रूप में. लालू जी का मकसद स्पष्ट था - आते हीं उन्होंने "भूराबाल" साफ़ कर दिया और उसमें भी भूमिहारों को पूरे समाज का दुश्मन ब्रांड कर दिया. यह करना उनके लिए जरूरी था क्यूंकी वे जिस दूर दृष्टी हीनता, स्वार्थ और भरष्ट्राचार की राह प्लान कर रहे थे उसमें यही भूराबाल हीं राह का रोड़ा हो सकता था उसमें भी वाचाल - विद्रोही - अविश्वसनीय - कांग्रेस - भाजपा - वामपंथ सबका आधार - भूमिहार . . . खुद उनके साथ भी सबसे आगे वही था और इसी बात से उनको भूमिहार से डर था सो उसको सबसे बड़ा दुश्मन घोषित कर दिया जिसे गैर बिहारी मीडिया - बिहार की भी मीडिया गैर बिहारी हीं है - ने भी खूब सराहा।
समय के साथ उनके और उनके कुनबे के ऊपर भरष्ट्राचार के आरोप लगते रहे पर जिस स्पष्टता और दक्षता के साथ उन्होंने भूराबाल को समाज का दुश्मन करार दिया वह पिछले तीस सालों के बाद भी अपनी जगह कायम है और उसके बदलने के कोइ संकेत नहीं हैं. प्रशांत किशोर की तरह नरेंद्र मोदी का उदाहरण देकर इसे झुठलाने की कोशिश न करें उससे बिहार का दर्द कम नहीं होगा। लेकिन हाँ इसको बदलने के लिए प्रयास भूराबालों से हीं होना है जो पिछले तीस सालों में नहीं हुआ। लोग सुशिल मोदी के सहारे रहे - जिसके रीढ़ की हड्डी और बुद्धि इतनी हीं है की 2019 में पूरी "मोदी" टाइटल को चोर कहने पर राहुल गांधी पर केस गुजरात के सूरत में हुआ - राहुल गांधी को सजा मिली तब जाकर इस मोदी को याद आया की उसका भी टाइटल मोदी है और उसने पटना में केस किया - मरे हुए सांप को डेंगाने के लिए! खैर, शायद भाजपा नेतृत्व को सुशिल मोदी की अक्षमता और उनके सही जगह का अहसास हो गया है पर बिहार के समाज को पिछले तीस सालों में भाजपा ने सिर्फ धोखा दिया।
अच्छा हम जातीय व्याख्या कर रहे हैं - तो भईया अंग्रेजों और उसके चेले कोंग्रेसियों ने समाज को उसी स्तर पर रखा है और भाजपाईयों / आर एस एस वालों को अभी पता नहीं कितने दशक लगने वाले हैं - फिलहाल तो जातीय जनगणना को न्यायलय भी तर्कसंगत हीं मान रही है. खैर, तो नितीश कुमार जी ने भूराबाल और भ्रष्ट्र गैर जिम्मेवार लालू के कुनबे के बीच अपने लिए जगह बनाया और दोनों को एक दूसरे से डरा कर अपना काम चलाया पर अंत में उन्हें लालू कुनबा हीं भाया! क्यों? क्यूंकी उनके साथ जातीय समीकरण सही बैठता है? पता नहीं, पर वहां कोइ नितीश जी के मुद्दों की आलोचना करे - अब - ऐसा किसी में दम नहीं है. नितीश जी का सबसे पहला मुद्दा अपनी कुर्सी कायम रखना है. हर हाल में. नहीं, यदि लालू का कुनबा अकर्मण्य और अयोग्य है तो प्रजातंत्र में कुछ दिनों के लिए उनको राज्य की बागडोर चली भी जाए तो कोइ बात नहीं जनता खुद उन्हें अगले चुनाव में नकार देगी। लेकिन नितीश जी में ऐसा धैर्य या आत्म विश्वास के साथ सबसे बड़ी कमजोड़ी है तो कुर्सी के मोह की.
खैर
तो आप देख रहे हैं - बिहार में कुर्सी का तांडव - जातीय व्याख्या के साथ
बिहार का औद्योगिक और आर्थिक विकास किसी का अजेंडा नहीं है - "बिहारी", गैर बिहारियों के लिए गाली बन चुका है - बिहारियों के लिए बिहार से बाहर काम करना मजबूरी और गाली खाना मार खाना मारा जाना दिन चर्या का हिस्सा. बिहार के नेतृत्व के अंदर भूराबाल - स्वार्थ और भ्रष्ट्राचार - और कुर्सी के लिए तकरार के अलावा कुछ भी नहीं है . . .
कांग्रेस की हीं तरह भाजपा और आर एस एस के लिए भी बिहार का नेतृत्व अजेंडा नहीं है. 40 में से 40 सीटें जीतेगी भाजपा - राष्ट्रीय नेतृत्व में बिहार के लोग कांग्रेस के जमाने में भी योगदान करते थे आज भी कर रहे हैं आगे भी करते रहेंगे. बिहार के लोगों की समस्या, उनका आत्म सम्मान, उनकी सुरक्षा, उनकी बेहतरी के लिए दिल्ली या अमेरिका से लोग नहीं आएंगे, बिहारियों को हीं काम करना होगा और नहीं तो मरते रहना होगा. बिहार के भाजपा और आर एस एस के लोग सुशिल मोदी के मिसगाईडेंस से अभी बाहर नहीं आये हैं. ऐसे में जिसे बेचैनी हो वह अपना घर जलाये, कुर्की जब्ती करवाए अपने को प्रताड़ित करवाए तभी समाज में रौशनी होगी. तभी कुछ रास्ता निकलेगा. इसी क्रम में मनीष कश्यप एक कड़ी है. बिहारियों की समस्याओं पर अपने अंदाज में बोलते हुए वह पाखंडी घमंडी सत्ता के हत्थे चढ़ गया. अपने आजमाए हुए नुख्शे से निकाले एक हीं तीर में - वह भाजपा का आदमी है भूमिहार है - तेजस्वी ने उसका काम तमाम कर दिया. वह भूमिहार है इसीलिए उसको बिहार के बारे में बोलने का कोइ हक़ नहीं है.
अच्छा बिहार और खासकर बोहार से बाहर रहने वाले बिहारियों के साथ एक और बड़ा छल है - बिहार के आई ए एस - आई पी एस - बड़े पत्तरकार - वैगेरह वगैरह . . . ये लोग लालू नितीश से कम भ्रष्ट्र या स्वार्थी लालची नहीं हैं. मौक़ा आने पर सुभाष चंद्र बोस और सावरकर या गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे लोग कहीं और पैदा होते थे, बिहार में सभी गांधी और नेहरू के पुतले हैं. बिहारी किसी का अजेंडा नहीं है! मनीष कश्यप भगत सिंह बनने की गलती कर चुका है. तो फिर उसके लिए इतना उछल कूद क्यों? ये उछल कूद भूमिहार जाती की समस्या है. मनीष कश्यप ने जो रास्ता चुना है उसका वही होना है - भगत सिंह - वो भी नहीं - उनका तो नाम भी हो गया - उनके साथ थे बटुकेश्वर दत्त - पटना की हीं गलियों में रहते थे . . . बिना इलाज के . . .
हाँ
किसी भी समाज का नेतृत्व, व्यक्तिगत छोटे स्वार्थ से ऊपर उठकर हीं संभव है . . . और उसके लिए अपने लालच और अन्य छोटी इक्षाओं की कुर्बानी देनी पड़ती है . . .
मनीष ने बम नहीं मारा है - दिया जलाया है - वह दिया रौशनी देगा या धुंआ यह समाज पर निर्भर करता है जिसका काम है उस दिया में तेल डालना - जाती का तेल नहीं - बिहारी का तेल - तभी यह दिया जलेगा - रौशनी देगा - वरना सिर्फ धुंआ . . . #Bihar #bihari #BiharNews

Saturday, March 25, 2023

भूत - प्रेत, पागलपन, मानसिक रोग, मिर्गी का दौरा: दिमाग के उच्च स्थान की बीमारी #bhootiyaaaina #bhoot_video #भूत - #प्रेत, #पागलपन, #मानसिक रोग, #मिर्गी का #दौरा

#bhootiyaaaina #bhoot_video #भूत - #प्रेत, #पागलपन, #मानसिक रोग, #मिर्गी का #दौरा
भूत - प्रेत, पागलपन, मानसिक रोग, मिर्गी का दौरा: दिमाग के उच्च स्थान की बीमारी 
भूत - प्रेत, पागलपन, मानसिक रोग, मिर्गी का दौरा, दिमाग की मिलती जुलती बीमारियां हैं. दिमाग के उच्च स्थान पर जहाँ से हमारे सोचने, फैसला लेने, कल्पना करने की क्षमता का नियंत्रण होता है, उस स्थान पर जब गड़बड़ी होती है तो, दिमाग के उस ख़ास स्थान के काम के हिसाब से भूत - प्रेत, पागलपन, मानसिक रोग, मिर्गी का दौरा जैसी बीमारियां होती हैं. 
एक तरफ जहाँ पश्चिमी देशों में इन बीमारियों का आधुनिक वैज्ञानिक समझ विकसित किया गया तो दूसरी ओर हमारे देश में ऐसी बीमारियों को झाड़ फूंक, जादू और तंत्र मन्त्र या झोला छाप के सहारे छोड़ दिया गया. इन बीमारियों को समझने के लिए रोगियों के साथ ज्यादा समय बिताने की जरुरत होती है जो हमारे देश में प्रशिक्षित डॉक्टर की कमी के कारण नहीं हो पाता है और उसका नतीजा होता है की लोग झाड़ फूंक, जादू और तंत्र मन्त्र या झोला छाप के पास जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं. इसके कारण एक तरफ बीमार व्यक्ति परेशान  रहते हैं, उनका और उनके रिश्तेदारों का शोषण होता है तो दूसरी ओर झाड़ फूंक, जादू और तंत्र मन्त्र करने वाले व्यक्ति या झोला छाप अपने को भगवान सिद्ध कर देते हैं और कभी कभी समाज में खतरनाक स्थिति पैदा कर देते हैं. 
झाड़ फूंक, जादू और तंत्र मन्त्र करने वाले व्यक्ति या झोला छाप अप्रशिक्षित किन्तु अच्छे मनोवैज्ञानिक होते हैं और उनका क्रिया कलाप अनियंत्रित होता है. वे अपनी सफलता का उपयोग अपनी सामाजिक शक्ति बढ़ाने और लोगों का शोषण करने में लगाते हैं और समाज पर खतरनाक प्रभाव डालते हैं. स्पष्टता और पारदर्शिता के साथ हीं किसी भी प्रकार के रेगुलेशन या सरकारी - सामजिक नियंत्रण के अभाव में ये लोग सुपर पावर हो जाते हैं. एक तरफ झाड़ फूंक, जादू और तंत्र मन्त्र करने वाले व्यक्ति या झोला छाप हमारे देश समाज शासन प्रशासन सरकार में आम जनता के स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता के कारण पनपे हैं तो दूसरी ओर  शायद ये सबसे असरदार स्वास्थ्यकर्मी हैं. वर्त्तमान सामाजिक परिस्थितियों  में इनके काम के महत्त्व को नजरअंदाज करने और इनके कार्य और कार्य प्रणाली के कारण समाज में बहुत सारी परेशानियां होती है और कभी कभी खतरनाक अमानवीय स्थिति उत्पन्न हो जाती है.  
समझने की बात यह है की इन बीमारियों को सबसे पहले बीमारी की तरह समझना चाहिए और बीमार व्यक्ति के प्रति दया या घृणा का नहीं बल्कि सहानुभूति का भाव रखना चाहिए और उनका ख़याल रखना चाहिए. ये बेहोशी की हालत में अपना ख़याल नहीं रख सकते हैं और इनके आस पास के लोगों की जिम्मेवारी बढ़ जाती है. होश में रहते हुए भी ये ऐसे विचार रख सकते हैं जो इनके लिए और इनके आस पास के लोगों के लिए खतरनाक स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं और खतरा ला सकते हैं. 
स्पष्टता और पारदर्शिता के साथ बीमार व्यक्ति और उनके रिश्तेदारों को बीमारी के बारे में जानकारी देनी चाहिए. उनको परेशान करने या उनका शोषण करने के किसी भी संभावना से उन्हें बचाया जाना चाहिए. दवाओं और शल्य चिकित्सा का यथा संभव अधिक से अधिक उपयोग होना चाहिए जिससे जल्दी और सटीक इलाज़  हो सके और प्रत्यक्ष फ़ायदा हो. 
इसकी जानकारी समाज के हर व्यक्ति को होनी चाहिए की भूत - प्रेत, पागलपन, मानसिक रोग, मिर्गी का दौरा, दिमाग की मिलाती जुलती बीमारियां हैं और इनका मनोवैज्ञानिक तरीकों के अलावे दवाओं और शल्य चिकित्सा से सटीक इलाज संभव है. सुविधाओं के अभाव में भटकने और परेशान होने से बचने के लिए सही जानकारी हीं उपाय है.
Dr Manish Kumar
Neurosurgeon
SHKEI NEUROCARE CENTRE
465 SFS FLATS DDA pocket one sector 9 Dwarka
9810325181, 011 35724416, 01135716020

Tuesday, March 31, 2020

Indian Life after 15th April 2020


(1) Lockdown - present Lockdown is good . . . timely . . . appropriate . . . Whether it would be extended or not - is 15 days ahead . . . If its extended - whether it would be of the same type - total clamp down or partial relaxation or partial lockdown . . . would all be decided by the government before 14th April . . . I would also update this few days before the end of present lockdown . . .
(2) Change in social behaviour pattern should be permanent and should be from now and today - at least till this Corona fear is over . . .
(a) Must not venture out side home for other than medical purpose or pretty sure about the disease - if you have fever or cough or cold
(b) Dont go out of house and or dont meet people un-necessarily . . .
(c) If you come back home after any outing - meeting - dont meet people at home - or dont meet the next person - until clean yourself properly - Hands alone or take bath as you feel appropriate . . .
(d) Dont hand shake or touch or embrace or kiss others. . . keep a distance of at least one meter . . .
(e) Preferably wear mask if you go out - must if you have cough and cold . . .
(f) preferably wear gloves - will remind you to not to touch face . . .
(g) Wash at least hand every time if you touch unknown things - Take bath as frequently as possible - at least while coming home from out side . . .

Thursday, February 13, 2020

उड़ा पाल मांझी बढ़ा नाव आगे udaa paal manjhi uda paal uraa paal

उड़ा पाल मांझी
बढ़ा नाव आगे
अरे शोक मत कर समझ भाग्य जागे
उड़ा पाल मांझी बढ़ा नाव आगे
अपने जीवन के नाव की पतवार खुद हीं हो . . .
अपने जीवन के नाव के मांझी भी खुद हीं हो . . .
ओ मांझी . . .
उड़ा पाल
बढ़ा नाव आगे
उड़ा पाल मांझी बढ़ा नाव आगे
न पड़ता दिखाई यदि हो किनारा
अगर हो गई आज प्रतिकूल धारा
क्षुधित व्याघ्र सा क्षुब्ध सागर गरजता
अगर अंध तूफ़ान करताल बजता
न थक कर शिथिल हो न भय कर अभागे
उड़ा पाल मांझी
बढ़ा नाव आगे
निशा है अँधेरी तिमिर घोर छाया
महाकाल मुख में जगत है समाया
कहीं से न आती अगर रश्मि रेखा
तुझे पथ दिखाती तड़ित ज्योति लेखा
अरे शोक मत कर समझ भाग्य जागे
उड़ा पाल मांझी
बढ़ा नाव आगे
बला से अगर आज पतवार टूटी
प्रलय नृत्य करती चली दिग्वधूटी
न साहस घटे धीर साथी न छूटे
न चिंता ह्रदय की प्रबल शक्ति लूटे
मरण देख तुझको स्वयं आज भागे
उड़ा पाल मांझी
बढ़ा नाव आगे