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भूत - प्रेत, पागलपन, मानसिक रोग, मिर्गी का दौरा: दिमाग के उच्च स्थान की बीमारी
भूत - प्रेत, पागलपन, मानसिक रोग, मिर्गी का दौरा, दिमाग की मिलती जुलती बीमारियां हैं. दिमाग के उच्च स्थान पर जहाँ से हमारे सोचने, फैसला लेने, कल्पना करने की क्षमता का नियंत्रण होता है, उस स्थान पर जब गड़बड़ी होती है तो, दिमाग के उस ख़ास स्थान के काम के हिसाब से भूत - प्रेत, पागलपन, मानसिक रोग, मिर्गी का दौरा जैसी बीमारियां होती हैं.
एक तरफ जहाँ पश्चिमी देशों में इन बीमारियों का आधुनिक वैज्ञानिक समझ विकसित किया गया तो दूसरी ओर हमारे देश में ऐसी बीमारियों को झाड़ फूंक, जादू और तंत्र मन्त्र या झोला छाप के सहारे छोड़ दिया गया. इन बीमारियों को समझने के लिए रोगियों के साथ ज्यादा समय बिताने की जरुरत होती है जो हमारे देश में प्रशिक्षित डॉक्टर की कमी के कारण नहीं हो पाता है और उसका नतीजा होता है की लोग झाड़ फूंक, जादू और तंत्र मन्त्र या झोला छाप के पास जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं. इसके कारण एक तरफ बीमार व्यक्ति परेशान रहते हैं, उनका और उनके रिश्तेदारों का शोषण होता है तो दूसरी ओर झाड़ फूंक, जादू और तंत्र मन्त्र करने वाले व्यक्ति या झोला छाप अपने को भगवान सिद्ध कर देते हैं और कभी कभी समाज में खतरनाक स्थिति पैदा कर देते हैं.
झाड़ फूंक, जादू और तंत्र मन्त्र करने वाले व्यक्ति या झोला छाप अप्रशिक्षित किन्तु अच्छे मनोवैज्ञानिक होते हैं और उनका क्रिया कलाप अनियंत्रित होता है. वे अपनी सफलता का उपयोग अपनी सामाजिक शक्ति बढ़ाने और लोगों का शोषण करने में लगाते हैं और समाज पर खतरनाक प्रभाव डालते हैं. स्पष्टता और पारदर्शिता के साथ हीं किसी भी प्रकार के रेगुलेशन या सरकारी - सामजिक नियंत्रण के अभाव में ये लोग सुपर पावर हो जाते हैं. एक तरफ झाड़ फूंक, जादू और तंत्र मन्त्र करने वाले व्यक्ति या झोला छाप हमारे देश समाज शासन प्रशासन सरकार में आम जनता के स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता के कारण पनपे हैं तो दूसरी ओर शायद ये सबसे असरदार स्वास्थ्यकर्मी हैं. वर्त्तमान सामाजिक परिस्थितियों में इनके काम के महत्त्व को नजरअंदाज करने और इनके कार्य और कार्य प्रणाली के कारण समाज में बहुत सारी परेशानियां होती है और कभी कभी खतरनाक अमानवीय स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
समझने की बात यह है की इन बीमारियों को सबसे पहले बीमारी की तरह समझना चाहिए और बीमार व्यक्ति के प्रति दया या घृणा का नहीं बल्कि सहानुभूति का भाव रखना चाहिए और उनका ख़याल रखना चाहिए. ये बेहोशी की हालत में अपना ख़याल नहीं रख सकते हैं और इनके आस पास के लोगों की जिम्मेवारी बढ़ जाती है. होश में रहते हुए भी ये ऐसे विचार रख सकते हैं जो इनके लिए और इनके आस पास के लोगों के लिए खतरनाक स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं और खतरा ला सकते हैं.
स्पष्टता और पारदर्शिता के साथ बीमार व्यक्ति और उनके रिश्तेदारों को बीमारी के बारे में जानकारी देनी चाहिए. उनको परेशान करने या उनका शोषण करने के किसी भी संभावना से उन्हें बचाया जाना चाहिए. दवाओं और शल्य चिकित्सा का यथा संभव अधिक से अधिक उपयोग होना चाहिए जिससे जल्दी और सटीक इलाज़ हो सके और प्रत्यक्ष फ़ायदा हो.
इसकी जानकारी समाज के हर व्यक्ति को होनी चाहिए की भूत - प्रेत, पागलपन, मानसिक रोग, मिर्गी का दौरा, दिमाग की मिलाती जुलती बीमारियां हैं और इनका मनोवैज्ञानिक तरीकों के अलावे दवाओं और शल्य चिकित्सा से सटीक इलाज संभव है. सुविधाओं के अभाव में भटकने और परेशान होने से बचने के लिए सही जानकारी हीं उपाय है.
Dr Manish Kumar
Neurosurgeon
SHKEI NEUROCARE CENTRE
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