Saturday, June 25, 2011

आज का भारत



आईये गर्व से कहें कि हम सब हैं भारतवासी








आईये गर्व से कहें कि हम सब हैं भारतवासी


हाँ, कुछ हैं अकल के अंधे


पूरब जनम के पापी


वो तो अमावस हीं कहेंगे


उन्हें कहां दिखाई परती है


ये पूरनमासी


अरे! अपना देश महान


अरे! ये  देश महान


था, है और रहेगा


किसकी हिम्मत है जो नहीं कहेगा?


कहना हीं परेगा


आखिर किस लिये है थाना?


थाना! था! ना!


ना! वो था!


चुस्त दुरुस्त चाक चौबंद व्यवस्था


कोट, कचहरी, शासन, प्रशासन


एक से एक कुंडली मार सिद्धों महंतों का आसन


त्रिकाल दर्शी वकील!


पापियों को कर देते शुद्ध!


हत्यारा भी दिखने लगता है महात्मा बुद्ध!


अरे इतना हीं नहीं


भारत भूमि के ये वकील अपनी पर आकर बहस करें


तो पूरी हकीकत को दिग्ध कर दें


पत्नी की जगह पति को गर्भवती सिद्ध कर दें!


वकील!


वकील सिद्ध हस्त होते हैं


फिट करने में कहीं की गोट कहीं


मुवक्किल अपने दुश्मन से छुटकारा पा सकता है


वकील से नहीं


क्यूँ?


क्यूंकि वकील सीधी साधी बातों को भी
रूई की तरह धुनते हैं!


और जज साहबान उसमें से बिनौले चुनते हैं!


ये कचहरी तो खुद हीं है दिवानी!


जिस पर इसका दिल आ जाए


उससे, उसके बेटे . . . बेटे के बेटे . . . से


चलती रहती है इसकी प्रेम कहानी!


इस दिवानी कचहरी में


यदी वो हसतिनापुर वाला केस लटक जाता!


तो तारीख दर तारीख


बड़े भईया को काँधे पर लादे ले जाते ले आते


भीम का पेट पिचक जाता


जंग के बिना अर्जुन के गांडीव में जंग लग गयी होती


केस के फैसले की प्रतीक्षा में द्रौपदी


केश खोले रोती


और अंत में डिग्री दुर्योधन की हीं होती!


जी हाँ!


यही है आज की कडवी सच्चाई


आज़ादी के इन ६५ सालों में


खाली जेब वालों ने


निर्णयों में सिर्फ आंसू हीं पाए हैं!


इसीलिए कोसा है


लेकिन हमारे नेताओं को


हमारे नेताओं को


इस न्याय व्यस्था में पूरा पूरा भरोसा है!


आखिर क्यूँ न हो?


आखिर क्यूँ न हो?


घोटाला, हवाला, यूरिया, चारा . . .


ये न्यायालय इनका कौन सा संताप नहीं हरती?


तभी तो नेता इन पर इतना भरोसा करते हैं


जितना अपने सगे बाप पर नहीं करते


अरे सगे बाप पर करें भडोसा


तो फिर जेल में बंद


सर लादे हुए पचास पचास केस


 कैसे जीत पायेंगे चुनाव की रेस?


न्याय और राजनीति का पावन अनुबंध!


बड़े मज़े में निभ रहा है ये मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध!


दोनों अपना अपना काम करते हैं


टकराते नहीं हैं


गुर्राते हैं


काटते नहीं हैं!


यहाँ का क़ानून!


शातिर है!


सयाना है!


बड़ा सटीक इसका निशाना है!


हाँ, बेचारा बस एक हीं तरफ देख पाता है!


इस देश का क़ानून अंधा नहीं है!


काना है!


और!


और, हमारे धर्मपरायाण नेता!


सोलहों कलाओं में पारंगत


आनंद कंद


व्यवहार से वीरप्पन


वाणी से विवेकानंद!


नटवर नागर!


भीतर भीतर लकरबग्घा!


बाहर कड़वा सागर!


उखाड पछाड जुगाड से धारण करते हैं मंत्री का भेष!


उसी को कहते हैं जनादेश!


शादी एक पार्टी से, फेरे लेते हैं दूसरी के साथ!


अरे लाल बत्ती वाली सेज सजे


तो किसी के साथ भी मना लेते हैं सुहाग रात!


विपक्ष कभी पड जाता है वज़नी


तो देखते हीं देखते


मंत्री जी बन जाते हैं सजना से सजनी!


उन्हें इक्कीस तोपों कि सलामी!


एक भी गोला सही निशाने पर नहीं बैठता!


पता नहीं कहां रह जाती है खामी?


मंत्री जी बाल बाल बचे!


मंत्री जी बाल बाल बचे!


अक्सर ये क्या हो जाता है?


शुभ काम के बीच में ये बाल कहां से आ जाता है?


 नेता छोटा बड़ा मझोला


लंबा या गोला


मरियल या भैंसा


सबका अतीत एक जैसा


ये!


ये बेर खाकर गुठली थूकें


तो बरगद जमे!


जहाँ कर दें पेशाब,


गंगा जमुना का दोआब


ये कहते हैं कि हम आम आदमी के आंसू पोछेंगे


मगर इस प्रश्न पर इनकी सात पीढ़ी मौन है


कि इस आम आदमी को आखिर रुलाता कौन है?


बाढ की विभीषिका में फंसे भूखे प्यासे मौत से घिरे अभागों की बेबसी नज़ारा


हेलिकोप्टर की खिडकी से!


पता नहीं ये हृदयहीन नेता कैसे जन्म लिये हैं?


सुरसा की जम्हाई से


या हिडिम्बा की हिचकी से


रावण और कंस की इन अवैध औलादों का तांडव


मनुश्यता का लहू पी रहा है


ऐसे में इस देश का आम आदमी


राम जाने कैसे जी रहा है!


इस साधारण आदमी को


इसके असाधारण दुखों में भी


जिसने बड़ी दृढता के साथ समेटा और सहेजा है


वो इसकी देह नहीं, इसका वज्र सा कठोड कलेजा है


व्यवस्था कब देख पाती है इसकी बदनसीबी


दवा इतनी महंगी


न खाए तो रोग मारे


खाए, तो मार डाले गरीबी


हाँ, इसके हाथ पारस हैं


हाँ, इस आम आदमी के हाथ पारस हैं


सोना बन जाता है जिस पर फेरे


मगर इसके बनाए हुए सोने को लगातार लूटते जा रहे हैं लुटेरे


सूखी सूरत, सूखी सेहत, सूखे सपने,


सूखी दुनिया  


जेठ हुआ जीवन


लाचार!


खाली जेब लिये देखता रहता है भड़ी भड़ी बाज़ार





अरे ओ इस देश के ठेकेदारों


अरे ओ इस देश के ठेकेदारों


रखवालों


अपने भ्रष्ट चरित्र का कैबरे करनेवालों


हाँ, ये आम आदमी पानी की तरह है


और पानी जिधर मोडो उधर चल देगा


मगर याद रखना


जिस रोज अपनी पर उतरा


तो बड़ी बड़ी चट्टानों को भी रेत में बदल देगा.


बड़ी बड़ी चट्टानों को भी रेत में बदल देगा.

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