Wednesday, April 12, 2023

मनीष कश्यप: राजनैतिक प्रयोगशाला में बिना तेल की जलती बाती - रौशनी या धुंआ? #Bihar #bihari #BiharNews

भा ज पा या वर्त्तमान मेन स्ट्रीम मीडिया मनीष कश्यप को भाव नहीं दे रही है क्यूंकी मनीष कश्यप भाजपा का नहीं है पर कड़वी सच्चाई यह है की वर्त्तमान के भाजपा के किसी नेता में यह दम नहीं है की वे लालू कुनबे या नितीश के आँख में आँख डालकर बात कर सके - या वे समझते होंगे की मंदिर और हिन्दू मुस्लिम का टेंशन उनकी जीत के लिए काफी होगा

बिहार में वैसे तो पिछले पचास - पचपन सालों से आर्थिक - औद्योगिक ह्रास हीं हुआ है, लेकिन 1990 के बाद देश और दुनिया के सबसे निचले स्तर पर रहा है. वैसे तो अशोक मौर्या के बाद बिहार के भू- भाग से उस स्तर का कोइ भी प्रभावी नेतृत्व नहीं रहा, पर 1960 - 70 के दशक में जब स्वतन्त्रता सेनानियों वाला जेनेरेशन एक के बाद एक यह संसार छोड़ कर जाने लगा, बिहार का नेतृत्व बहुत हीं निचले स्तर का हो गया. इसमें बहुत बड़ा रोल केंद्र सरकार की फ़्राईट एक्वालाईजेशन नीति और खासकर इंदिरा गांधी की कांग्रेस में किसी भी सच्चे जनाधार वाले को न पनपने देने की नीति का था तो अलोक मेहता जैसे पत्रकारों का रोल भी कम नहीं था.

खैर 1961 से 1990 तक कमो - बेस कांग्रेस पार्टी का शासन हीं रहा लेकिन बिहार का औद्योगिक या आर्थिक विकास मुद्दा नहीं रहा - कुर्सी बचाना मुद्दा रहा क्यूंकी योग्य और कुशल व्यक्तिगत नेतृत्व का अभाव था और कांग्रेस पार्टी का अजेंडा बिहार का विकास नहीं था. बिहार के बाहर के लोगों के नियंत्रण की मीडिया सिर्फ गलत राह दिखलाती रही.
1990 से बिहार को एक मजबूत नेतृत्व हासिल है - लालू जी और उनके कुनबे के रूप में. लालू जी का मकसद स्पष्ट था - आते हीं उन्होंने "भूराबाल" साफ़ कर दिया और उसमें भी भूमिहारों को पूरे समाज का दुश्मन ब्रांड कर दिया. यह करना उनके लिए जरूरी था क्यूंकी वे जिस दूर दृष्टी हीनता, स्वार्थ और भरष्ट्राचार की राह प्लान कर रहे थे उसमें यही भूराबाल हीं राह का रोड़ा हो सकता था उसमें भी वाचाल - विद्रोही - अविश्वसनीय - कांग्रेस - भाजपा - वामपंथ सबका आधार - भूमिहार . . . खुद उनके साथ भी सबसे आगे वही था और इसी बात से उनको भूमिहार से डर था सो उसको सबसे बड़ा दुश्मन घोषित कर दिया जिसे गैर बिहारी मीडिया - बिहार की भी मीडिया गैर बिहारी हीं है - ने भी खूब सराहा।
समय के साथ उनके और उनके कुनबे के ऊपर भरष्ट्राचार के आरोप लगते रहे पर जिस स्पष्टता और दक्षता के साथ उन्होंने भूराबाल को समाज का दुश्मन करार दिया वह पिछले तीस सालों के बाद भी अपनी जगह कायम है और उसके बदलने के कोइ संकेत नहीं हैं. प्रशांत किशोर की तरह नरेंद्र मोदी का उदाहरण देकर इसे झुठलाने की कोशिश न करें उससे बिहार का दर्द कम नहीं होगा। लेकिन हाँ इसको बदलने के लिए प्रयास भूराबालों से हीं होना है जो पिछले तीस सालों में नहीं हुआ। लोग सुशिल मोदी के सहारे रहे - जिसके रीढ़ की हड्डी और बुद्धि इतनी हीं है की 2019 में पूरी "मोदी" टाइटल को चोर कहने पर राहुल गांधी पर केस गुजरात के सूरत में हुआ - राहुल गांधी को सजा मिली तब जाकर इस मोदी को याद आया की उसका भी टाइटल मोदी है और उसने पटना में केस किया - मरे हुए सांप को डेंगाने के लिए! खैर, शायद भाजपा नेतृत्व को सुशिल मोदी की अक्षमता और उनके सही जगह का अहसास हो गया है पर बिहार के समाज को पिछले तीस सालों में भाजपा ने सिर्फ धोखा दिया।
अच्छा हम जातीय व्याख्या कर रहे हैं - तो भईया अंग्रेजों और उसके चेले कोंग्रेसियों ने समाज को उसी स्तर पर रखा है और भाजपाईयों / आर एस एस वालों को अभी पता नहीं कितने दशक लगने वाले हैं - फिलहाल तो जातीय जनगणना को न्यायलय भी तर्कसंगत हीं मान रही है. खैर, तो नितीश कुमार जी ने भूराबाल और भ्रष्ट्र गैर जिम्मेवार लालू के कुनबे के बीच अपने लिए जगह बनाया और दोनों को एक दूसरे से डरा कर अपना काम चलाया पर अंत में उन्हें लालू कुनबा हीं भाया! क्यों? क्यूंकी उनके साथ जातीय समीकरण सही बैठता है? पता नहीं, पर वहां कोइ नितीश जी के मुद्दों की आलोचना करे - अब - ऐसा किसी में दम नहीं है. नितीश जी का सबसे पहला मुद्दा अपनी कुर्सी कायम रखना है. हर हाल में. नहीं, यदि लालू का कुनबा अकर्मण्य और अयोग्य है तो प्रजातंत्र में कुछ दिनों के लिए उनको राज्य की बागडोर चली भी जाए तो कोइ बात नहीं जनता खुद उन्हें अगले चुनाव में नकार देगी। लेकिन नितीश जी में ऐसा धैर्य या आत्म विश्वास के साथ सबसे बड़ी कमजोड़ी है तो कुर्सी के मोह की.
खैर
तो आप देख रहे हैं - बिहार में कुर्सी का तांडव - जातीय व्याख्या के साथ
बिहार का औद्योगिक और आर्थिक विकास किसी का अजेंडा नहीं है - "बिहारी", गैर बिहारियों के लिए गाली बन चुका है - बिहारियों के लिए बिहार से बाहर काम करना मजबूरी और गाली खाना मार खाना मारा जाना दिन चर्या का हिस्सा. बिहार के नेतृत्व के अंदर भूराबाल - स्वार्थ और भ्रष्ट्राचार - और कुर्सी के लिए तकरार के अलावा कुछ भी नहीं है . . .
कांग्रेस की हीं तरह भाजपा और आर एस एस के लिए भी बिहार का नेतृत्व अजेंडा नहीं है. 40 में से 40 सीटें जीतेगी भाजपा - राष्ट्रीय नेतृत्व में बिहार के लोग कांग्रेस के जमाने में भी योगदान करते थे आज भी कर रहे हैं आगे भी करते रहेंगे. बिहार के लोगों की समस्या, उनका आत्म सम्मान, उनकी सुरक्षा, उनकी बेहतरी के लिए दिल्ली या अमेरिका से लोग नहीं आएंगे, बिहारियों को हीं काम करना होगा और नहीं तो मरते रहना होगा. बिहार के भाजपा और आर एस एस के लोग सुशिल मोदी के मिसगाईडेंस से अभी बाहर नहीं आये हैं. ऐसे में जिसे बेचैनी हो वह अपना घर जलाये, कुर्की जब्ती करवाए अपने को प्रताड़ित करवाए तभी समाज में रौशनी होगी. तभी कुछ रास्ता निकलेगा. इसी क्रम में मनीष कश्यप एक कड़ी है. बिहारियों की समस्याओं पर अपने अंदाज में बोलते हुए वह पाखंडी घमंडी सत्ता के हत्थे चढ़ गया. अपने आजमाए हुए नुख्शे से निकाले एक हीं तीर में - वह भाजपा का आदमी है भूमिहार है - तेजस्वी ने उसका काम तमाम कर दिया. वह भूमिहार है इसीलिए उसको बिहार के बारे में बोलने का कोइ हक़ नहीं है.
अच्छा बिहार और खासकर बोहार से बाहर रहने वाले बिहारियों के साथ एक और बड़ा छल है - बिहार के आई ए एस - आई पी एस - बड़े पत्तरकार - वैगेरह वगैरह . . . ये लोग लालू नितीश से कम भ्रष्ट्र या स्वार्थी लालची नहीं हैं. मौक़ा आने पर सुभाष चंद्र बोस और सावरकर या गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे लोग कहीं और पैदा होते थे, बिहार में सभी गांधी और नेहरू के पुतले हैं. बिहारी किसी का अजेंडा नहीं है! मनीष कश्यप भगत सिंह बनने की गलती कर चुका है. तो फिर उसके लिए इतना उछल कूद क्यों? ये उछल कूद भूमिहार जाती की समस्या है. मनीष कश्यप ने जो रास्ता चुना है उसका वही होना है - भगत सिंह - वो भी नहीं - उनका तो नाम भी हो गया - उनके साथ थे बटुकेश्वर दत्त - पटना की हीं गलियों में रहते थे . . . बिना इलाज के . . .
हाँ
किसी भी समाज का नेतृत्व, व्यक्तिगत छोटे स्वार्थ से ऊपर उठकर हीं संभव है . . . और उसके लिए अपने लालच और अन्य छोटी इक्षाओं की कुर्बानी देनी पड़ती है . . .
मनीष ने बम नहीं मारा है - दिया जलाया है - वह दिया रौशनी देगा या धुंआ यह समाज पर निर्भर करता है जिसका काम है उस दिया में तेल डालना - जाती का तेल नहीं - बिहारी का तेल - तभी यह दिया जलेगा - रौशनी देगा - वरना सिर्फ धुंआ . . . #Bihar #bihari #BiharNews

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